Аннулет. Книга 5 – Паладин

- Жанр: Фантастика, Приключения, Попаданцы, Боевик
- Автор: Константин Вайт
- Цикл: Аннулет
- Формат: fb2
Главный герой оказывается в Мариуполе, где его встречает Михаил Алёхин. Он представляет себя как крепкий мужчина в дорогих одеждах. Вместе с ним за столом сидит Пётр Корсаков, который заранее подготовил всё к приезду героя. Вечер начинается с ужина, где обсуждаются важные дела и планы на будущее. Атмосфера дружеская, но в то же время чувствуется, что у каждого есть свои тайны и цели.
Герой быстро понимает, что его ждут не только светские беседы, но и серьезные испытания. Михаил говорит о магическом фоне, который сильно отличается от привычного. Он объясняет, что в округе есть опасности, и для их защиты требуется команда солдат. Это создает ощущение, что мир, в котором они живут, полон магии и угроз, которые могут внезапно появиться.
Среди персонажей выделяется Галина Владимировна, целительница, которая не выглядит как典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典典
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